GUDDU MUNERI

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मेहनत ही सिफारिश है


[ मेहनत ही सिफारिश है ] 


" चला भाग यहां से " 

" यहां कोई काम वाम नही है " 

" पता नही कहां कहां से आ जाते है " 

" सीलमपुर में काम ढूंढने " 

लेडीज रेडिमेड कपड़े की दुकान पर बैठा थोक दुकानदार ( पिंटू लाल जी ) ने " मनीष " को चिल्ला  कर भगाते हुए कहा ।


मनीष वैसे एक मेहनती लड़का था और वह बखूबी जानता था कि ग्राहक को किस तरह से हैंडल करना है लेकिन सिफारिश के इस दौर में उसे कोई अपनी दुकान पर रख नही रहा था 


वह दिल्ली के गांधी नगर मार्केट में अनीस जी के काम कर चुका था लेकिन सर्दियां बढ़ने के बाद से मनीष ने काम पर जाने से मना कर दिया था 


करावल नगर से गांधी नगर तक ऑटो में सफर करनें के कारण मनीष की तबियत कई बार खराब हो चुकी थी

इस वजह से उसकी मम्मी ने उसको यही भजनपुरा या करावल नगर और मुस्तफाबाद जैसी मार्केट में काम ढूंढने के लिए कह रखा था ।


आज सुबह ही सीलमपुर फिर करावल नगर मार्केट से कई दुकानदार से मनीष मिलकर आया लेकिन किसी ने हामी नहीं भरी कि कल से हमारे यहां काम पर आ जाओबी।


 किसी को अगर रखना भी होता तो लोग सिफारिश या गारंटर की जिम्मेदारी का। हवाला देकर उसे भगा देते ।


लेकिन कहते है न मेहनत किसी की जाया नही जाती ठीक वैसा ही हुआ मनीष के साथ ।


पड़ोस में रहने वाले सलीम बाजार जा रहे थे मनीष ने उसने यूंही बोल दिया - 

" क्या बात सलीम भाई बाजार जा रहे हो " 


रिक्शे का हैंडल संभालते हुए ऐसे ही सलीम भाई ने भी जवाब दे दिया - 

" हा जा रहा हूं , तू भी चलेगा " 


" हा चलता हूं " 

मनीष ने यह सुनकर हा कर दी और वैसे भीं खाली फिर रहा हूं क्यों न सलीम भाई के साथ ही चल दूं क्या पता कुछ जुगाड बन जाए काम का ।


मनीष ने खिड़की की साइट से अपनी मम्मी को आवाज लगा दी - 

" मम्मी आज मैं सलीम भाई के साथ बाजार जा रहा हूं " 

" शाम को ही लौटूंगा " 


मनीष की मम्मी ने दरवाजे से बाहर आकर देखा 

पड़ोस के सलीम भाई जो बाजार में लेडीज सूट बेचते  हैं मनीष उनके ही साथ रिक्शे के पीछे पीछे गली से गुजरता हुआ जा रहा है 


" ठीक है मनीष " दरवाजे से ही आवाज लगा कर मनीष की मम्मी ने कहा ।


और फिर मनीष ने एक बार और पीछे मूढ़कर देखा और फिर सीधा ही सलीम भाई के साथ चलते चला गया ।


करावल नगर से शेरपुर पास पड़ता था जहां सलीम भाई को बाजार लगाना होता था ।

 आज बुधवार का दिन था समय से बाजार लगाने के बाद 

शाम तक सलीम भाई के साथ मनीष ने काम में खूब हाथ बटाया और फिर शाम घर वापसी में बातें करते हुए चले आ रहे थे 

रिक्शे हैंडल पकड़े हुए सलीम भाई चलें आ रहे है और मनीष से कह रहे है कि

" मैंने तो मजाक में कहा था चलने के लिए " 

" मुझे लगा तू जायेगा नही " 

" वैसे मेहनत तो तूने मेरे साथ की है " 

" और तू सेल्मेनी करता था क्या गांधी नगर में " 


खड़ी बोली थी सलीम भाई की लेकिन दयालु और ईमानदारी की मिसाल थे, जेब से कुछ पैसे निकाल कर मनीष को पैसे देते हुए बोले - 


" ले ये रख ले " सलीम भाई ने कहा 

" अरे रहने दो " मनीष ने कहा 

" ले रख न " सलीम भाई ने फिर कहा 


" अरे मैं एक दो दिन में कहीं न कहीं काम ढूंढ लूंगा "

 मनीष बोला ।


" कोई बात नही  काम ढूंढ लेना पहले यह रख " 

सलीम भाई ने बोला ।


अबकी बार ने नर्म लहजे में मनीष ने वह पैसे रख लिए 

और फिर थोड़ी देर में घर भी आ गया 

सलीम ने रिक्शे में बचा हुआ माल घर में रखवाया और फिर मनीष को भेज दिया -

" अब तू जा घर आराम कर " 

यह सुनकर मनीष घर चल गया 


मम्मी बोली - 

" और कुछ खाया पिया वहा या नहीं " 

" ऐसे ही चला गया कुछ ले जाता खाने के लिए" 

"  चल खाना बन गया है खाना खा ले " 


" सलीम भाई ने दो बार चाय और समोसे मंगवा लिए थे "

मनीष ने कहा 

" और क्या बनाया है " मम्मी से मनीष पूछते हुएं

" पनीर और साग की सब्जी हैं " 

मम्मी ने खाना परोसते हुए कहा 


" और हा मम्मी ! ये पैसे दिए थे सलीम भाई ने " 

मनीष बोला 

" अच्छा " " रख ले " " कितने दिए हैं " मम्मी बोली  


मनीष ने कहा - 

" ३०० रुपए है लो तुम रख लो 

सुबह मुझे सो रुपए दे देना " 


";ठीक है "  मम्मी ने कहा 


और फिर खाना खाने के बाद रात हो चली , रात की नींद पूरी करने के बाद जब सुबह हुई मनीष फिर से अपने एक मित्र के साथ दूसरी मार्केट गया ।

लेकिन दोपहर तक वही हुआ जो रोजाना उसके साथ होता आ रहा था ।

किसी ने कोई काम पर नहीं रखा आखिर वजह क्या थी । इसी वजह से मनीष परेशान था कि मुझे काम क्यों नहीं मिल रहा ।


दोपहर हुई तो वह सलीम भाई के साथ बाजार चला गया

अब यही सिलसिला मनीष के साथ हफ्ते भर चलता रहा 

लगभग सर्दियां भीं अब जानें को थी 

जनवरी माह गुजरने में करीब दो तीन दिन ही बाकी थे

मनीष को काम छोड़े हुए आज पूरा एक महीना हो चला था 

      शाम के समय जब सलीम भाई मनीष के साथ बाजार से लौट रहें थे तो सलीम साहब ने मनीष को कहा कि - 

" क्या तू अकेले बाजार लगा सकता है "मैं तेरी दैनिक मजदूरी " में इजाफा कर दूंगा तू बड़ा ही ईमानदार और नेक लड़का लगा मुझे " 

" और तू माल बेचने में मेहनत भी करता है " 


" ठीक हैं" मनीष ने कहा ।

और अगले दिन से हीं सलीम भाई ने अपने बाजार के ठिए से कुछ दूरी पर दूसरा ठिया मनीष का लगवा दिया " 


अब रोज की तरह मनीष काम करता और घर आता मनीष को भी अब बाजार में आनंद आने लगा था बाजार में जान पहचान बढ़ने लगी थी 


सलीम भाई जहां से माल लाते और मनीष को दे देते एवम हिसाब किताब के बाद सारी बातें समझते और अब तो 

मनीष की दैनिक सेलरी ४०० रुपए हो गईं थी 

जिससे वह खुशी खुशी मम्मी को लाकर दे देता था 

   अब तो जनवरी माह भी बीत गया और फरवरी की १५ तारीख आ चली थी सब ठीक ठाक ही चल रहा था ।

  सलीम भाई एक दिन मनीष को लेडीज सूटो का माल दिलाने के लिए सीलमपुर मार्केट ले गए जहां पर सस्ते दामों में अच्छे कपड़े मिल जाते थे । 

एक दो जगह माल का दाम देखते परखते हुए वह दोनो पिंटू लाल जी की रेडिमेड कपड़े की दुकान पर पहुंचे 


" मनीष ! तु यहां बाइक संभाल मैं आया " सलीम। भाई यह कहते हुए दुकान में चले गए । 


" और पिंटू लाल जी कैसे हो " 

" सब ठीक ठाक " सलीम भाई ने कहा 


" हा सब कुशल मंगल है जी " ,"आओ बैठो " 

पिंटू सेठ ने कहा । 


पिंटू सेठ सलीम भाई को नए नए डिजाइन के सूट की ओर इशारा करते हुए 

" इधर देखो सलीम भाई " 

" ये देखो , ये नए नए डिजाइन आए हुए है कॉटन में " 

" दो डिजाइन नए आए है दुपट्टे के साथ वाले " 


और साथ में पिंटू सेठ ने एक दरखास्त लगाई कि

" और सलीम एक लड़का बता रहे थे तुम " 

" पिछली बार " क्या हुआ उसका ? 

" पूछा कि काम करेगा या नहीं " 


सलीम भाई ने कहा - 

" नही मैं नही पूछ पाया आजकल वो मेरे साथ लगा हुआ है" 

इतने में तो मनीष भी अंदर आ गया  मोटर साइकिल बाहर साइड में सही से खड़ी करके ।


मनीष ने देखते ही पिंटू सेठ को पहचान लिया था लेकिन वह चुपचाप आकर सलीम भाई के पीछे खड़ा हो गया 


पिंटू सेठ नही पहचान पाए थे कि यह वही लड़का है जिसे महीने दो महीने  पहले अपनी दुकान पर काम के वास्ते आया और फिर भागा दिया था 


मनीष को देखते हुए बोले सलीम भाई 

"  ये है मनीष इसे रख लिया है अपने साथ  " 


" ओह तुम हो " 

" और कैसे हो बेटा " 

" सुना है बाजार में दुकान की तरह माल बेचते हो " 

सेठ ने कहा ।


" जी बेच लेता हु "

" यहीं कोई आठ दस हजार का माल हफ्ते में " 

मनीष ने जवाब दियाबी।


तभी सलीम साहब को शौचालय की याद आती है 

" अरे पिंटू साहब तुम्हारे शौचालय में जा रहा हूं " 

" जरा सभी आया " मनीष को कहते हुए गए 


सलीम साहब के जाने के बाद पिंटू सेठ ने कई सवाल जवाब मनीष से किए और मनीष से कहा -

" क्या तुम हमारी इस दुकान पर काम कर सकते हो " 

" मैं तुम्हे १०० रुपए दैनिक सेलरी और बड़ा कर दूंगा "!

" देख लो " " और आने जाने का किराया भी " 


" लेकिन मेरे पास कोई गारंटर नही है और न कोई सिफारिश देने वाला आप  मुझे ऐसे कैसे रख सकते है " 

मनीष ने कहा ।


" कोई बात नही आपको गारंटर लाने की जरूरत नहीं है"  

" और न आपको सिफारिश देने की " 

" अरे हम सलीम भाई को जानते है " 

" सलीम भाई तुम्हे ! 

" बस हो गाया काम " 

" आने दो अभी बात हो जायेगी " सलीम ! से 

पिंटू सेठ ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा ।


तभी सलीम भाई भी आ गए 

" हा भाई सलीम तेरा ये लड़का तो कल से हमारे यहां काम करेगा " सलीम भाई से पिंटू सेठ ने कहा 


सलीम भाई को बहुत बुरा लगा कि मनीष अब यहां काम करेगा जबकि ऐसा उसने नहीं कहा था 


" पिंटू सेठ मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है " नाराजगी से बोलते हुए सलीम भाई 


" ठीक है तो आज से ही लग जा " मनीष से कहा सलीम भाई ने ।


लेकिन कुछ देर नाराजगी जैसा मुड़ सलीम भाई का देखने के  बाद मनीष ने मना कर दिया और पिंटू सेठ से मनीष बोला कि

मैं आपके यहां काम नहीं कर सकता ।


" याद है एक दिन मैं आपके पास काम के लिए आया था " 

" और आपने किसी सिफारिश दार को बुलवाया था " 

तभी कान मिलेगा " 

"  गारंटर लाओ "  

" मैं वही हूं " और " आज मेरी मेहनत के गुणगान देख मुझे खरीदना चाहते " 


" मैं अच्छी तरह जानता हु मेरी मेहनत ही मेरी सिफारिश है " 

और मुझे मेरी मेहनत किसके साथ काम मे लगाए हुएं मैं ये जानता हूं " 

" शुक्रिया ";

" चलो सलीम भाई " 



- गुड्डू मुनीरी सिकंदराबादी  

- दिनांक : २५/०१/२०२४

- आज की प्रतियोगिता हेतु 

- टॉपिक : मेहनत ही सिफारिश है 


..... ,🌻.......🌻समाप्त ........🌻...🌻.......











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9 Comments

Mohammed urooj khan

30-Jan-2024 11:51 AM

👌🏾👌🏾👌🏾

Reply

Priyanshu Choudhary

26-Jan-2024 06:45 PM

Kya baat h 👌👌

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GUDDU MUNERI

26-Jan-2024 10:57 AM

सभी पाठको और लेखको का बहुत बहुत धन्यवाद

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